सहज योग अभी तक दुनिया में इतना प्रसिद्ध क्यों नहीं है? | संजय रोशन तलवार और अपर्णा गांगुली | प्रश्नोत्तर श्रृंखला – एपिसोड 1

नमस्कार जय श्री माताजी!


प्रिय भाईयों और बहनों, मैं अपर्णा गांगुली, और मेरे साथ हैं संजय रोशन तलवार जी।
हम एक नई वेब सीरीज़ शुरू करने जा रहे हैं — “अक्सर पूछे जाने वाले सवाल”

तो संजय जी, आपका हार्दिक स्वागत है।
आज के पहले एपिसोड में एक ऐसा प्रश्न है जो कई लोगों के मन में आता है —
हमारा सहज योग 1970 में शुरू हुआ, लेकिन 1985–1990 के बाद बहुत सी संस्थाएँ आईं,
जो खुद को धार्मिक कहती हैं, पर वास्तव में आत्म-साक्षात्कार नहीं दिलातीं।

जबकि सहज योग ने तो ईश्वर का अनुभव स्वयं करवाया है —
इससे अधिक और क्या चाहिए?
श्री माताजी एकमात्र ऐसी आध्यात्मिक गुरु थीं जिन्होंने डॉक्टरों के साथ प्रेस कॉन्फ़्रेंस की,
यह दर्शाता है कि सहज योग अनुभव और विज्ञान दोनों को जोड़ता है।

फिर भी सवाल उठता है —
इतना कुछ हो जाने के बाद भी सहज योगियों को आज भी प्रचार में संघर्ष क्यों करना पड़ रहा है?
गूगल पर जब ‘कुंडलिनी’ सर्च करते हैं तो सहज योग पहले पेज पर क्यों नहीं आता?
ऐसा क्यों है?


संजय रोशन तलवार जी:
अपर्णा जी, यह कलियुग का अंतिम चरण चल रहा है — जिसे ‘कृतयुग’ भी कहते हैं।
यह वह समय है जिसके बारे में श्री माताजी हमेशा हमें सावधान करती थीं।
उन्होंने हमें एक शुद्ध, शाश्वत और पवित्र विद्या दी —
जिससे हम स्वयं को भी पहचान सकते हैं और दुनिया को भी ठीक कर सकते हैं।

उन्होंने सहज योग के माध्यम से हमें जाग्रति और विवेक प्रदान किया।
यदि हम उनके 1970 से अब तक के सभी लेक्चर (जो amruta.org पर हैं) सुनें,
तो हम पाएंगे कि छोटे-छोटे क्लिप्स से पूरी गहराई समझ में नहीं आती।
जब तक हम पूरी स्पीच नहीं सुनते, ध्यान में पूरी तरह स्थापित नहीं हो पाते,
क्योंकि तब तक हम सिर्फ़ मानसिक स्तर पर घूम रहे होते हैं।

मां ने पहले ही चेताया था —
अहंकार और प्रति-अहंकार के कारण कई लोग भटक सकते हैं।
मैं सौभाग्यशाली था कि मुझे और मेरे पिता को श्री माताजी के सान्निध्य में रहने का अवसर मिला।
पिता जी ने उत्तर भारत में सहज योग की नींव रखी,
और मैं स्वयं 25 वर्षों तक श्री माताजी के साथ रहा।

उन्होंने मुझे संगीत, लेखन, और फिल्म के माध्यम से सहज योग फैलाने का कार्य दिया।
उन्होंने कहा — “संगीत के द्वारा सहज ज्ञान लोगों के हृदय तक पहुँचेगा।”
और इसी से निर्मल संगीत सरिता की शुरुआत हुई —
एक आंदोलन जिसने सहज योग के प्रचार में संगीत को माध्यम बनाया।

बाद में श्री माताजी ने कहा कि
“अब फिल्म और मीडिया के माध्यम से सहज योग को आगे बढ़ाना होगा।”
इसी से प्रेरित होकर “गृहलक्ष्मी – द अवेकनिंग” और “महालक्ष्मी पथ – द इवॉल्यूशन” जैसी फ़िल्में बनीं,
जो आज विश्वभर में सम्मानित हुई हैं।

मां की इच्छा थी कि सहज योग हर व्यक्ति तक पहुँचे,
लोग आपस में प्रेम, शांति और एकता से रहें।
उन्होंने कहा था —
“एक-दूसरे से विभाजन मत करो, बुराई मत करो, किसी को नीचा मत दिखाओ।”


प्रमुख बिंदु जो उन्होंने आगे रखे:

  • सहज योग के कुछ संगठनों में अब पवित्रता और प्रोटोकॉल का अभाव दिख रहा है।

  • श्री माताजी ने हमें स्वयं-सक्षम बनाया — हर सहजयोगी को अपना गुरु बनना चाहिए।

  • अहंकार और सत्ता की भावना से दूर रहकर सामूहिकता को मजबूत करना चाहिए।

  • सहज योग का प्रचार केवल ध्यान से नहीं, बल्कि संगीत, फिल्म, वेब सीरीज़ जैसे आधुनिक माध्यमों से भी किया जा सकता है।

  • फिल्में और मीडिया समाज पर गहरा प्रभाव डालते हैं, इसलिए उनका उपयोग सत्य और प्रेम फैलाने में होना चाहिए।

  • सहज योग में शिक्षा और प्रशिक्षण की एक नई प्रणाली विकसित होनी चाहिए ताकि नए साधक दृढ़ता से स्थिर हो सकें।


अंत में संजय जी ने कहा:
“श्री माताजी ने कहा था — Be the change you want to see in the world.
आप स्वयं वह परिवर्तन बनिए।
हम फिल्मों और वेब सीरीज़ के माध्यम से यही करना चाहते हैं —
सहज योग को हर हृदय तक पहुँचाना।”

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